ना ज़माने-भर के बवालों से ना जवाबों से, ना सवालों से ना दिल के टुकड़े करने वालों से अब मैं खुद से लड़ गई हूँ, अब मैं हद से बढ़ गई हूँ जो चाहे कर ले ज़माना, अब मैं ज़िद पे अड़ गई हूँ अब मैं खुद से लड़ गई हूँ, अब मैं हद से बढ़ गई हूँ जो चाहे कर ले ज़माना, अब मैं ज़िद पे अड़ गई हूँ पग-पग रोड़े डाले रस्ता, ठोकर देके भागे रस्ता भाग के जाएगा तू कहाँ पे? अब मैं पीछे पड़ गई हूँ रग-रग में दौड़े है जुनूँ बस, मंज़िल से मिल के हो सुकूँ बस लाख बिछा दो पथ में काँटे, अब मैं जड़ से उखड़ गई हूँ अब मैं तह तक गड़ गई हूँ, अब मैं सर पे चढ़ गई हूँ जो चाहे कर ले ज़माना, अब मैं ज़िद पे अड़ गई हूँ अब मैं खुद से लड़ गई हूँ, अब मैं हद से बढ़ गई हूँ जो चाहे कर ले ज़माना, अब मैं ज़िद पे अड़ गई हूँ ना ज़माने-भर के इल्ज़ामों से ना तो अपनों से, ना अंजानों से ना हार-जीत के अंजामों से अब मैं खुद से लड़ गई हूँ, अब मैं हद से बढ़ गई हूँ जो चाहे कर ले ज़माना, अब मैं ज़िद पे अड़ गई हूँ अब मैं खुद से लड़ गई हूँ, अब मैं हद से बढ़ गई हूँ जो चाहे कर ले ज़माना, अब मैं ज़िद पे अड़ गई हूँ